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ऐसा क्यों होता है / बृजेश नीरज

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ऐसा क्यों होता है
रात का बुना सपना
खो जाता है
दिन के उजाले में

दिन की देह से टपकी
पसीने की हर बूँद
सोख लेती है
बंजर जमीन

मौसम के हर बदलाव के बाद
और मोटी-खुरदरी हो जाती है
हथेली की त्वचा

ऐसा क्यों होता है?