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ऐसा जीवन नहीं चाहिए / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
सूरज देखे बिना सुबह हो,
चंदा देखे बिन हो रात,
याद न आए हमें महीनों,
झिलमिल तारों की बारात,
ऐसा जीवन नहीं चाहिए!
नहीं चाहिए! नहीं चाहिए!
पेड़, फूल, फल पड़ें ढूँढने
हमको रोज किताबों में,
हरियाली रह जाए बिंधकर
सिर्फ हमारे ख्वाबों में,
ऐसा जीवन नहीं चाहिए!
नहीं चाहिए! नहीं चाहिए!
घर में केवल दीवारें हों,
और आँगन का नाम न हो,
काम, काम, बस काम-काम हो,
पर थोड़ा आराम न हो,
ऐसा जीवन नहीं चाहिए!
नहीं चाहिए! नहीं चाहिए!
हो दिमाग कंप्यूटर जिसमें
दुनिया भर का कूड़ा हो,
हो मशीन-सा फुर्तीला तन
पर मन बिलकुल बूढ़ा हो,
ऐसा जीवन नहीं चाहिए!
नहीं चाहिए! नहीं चाहिए!