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ऐसा टूटा भ्रम मोहब्बत का / सिया सचदेव

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ऐसा टूटा भ्रम मोहब्बत का
आशियाँ लुट गया है चाहत का

कैसे तुमको पुकारती बोलो
दरमयां था सवाल ग़ैरत का

तेरी जिद्द थी ग़ुरूर था क्या था
जो सबब बन गया बगावत का

कैसे गुज़री उदास शाम मेरी
हाल मत पूछ दिल की हालत का

बीते लम्हें टटोलती हूँ मैं
एक पल भी मिले जो फुर्सत का

मेरे सर पे करम रहा हरदम
मेरे ख़ालिक़ तुम्हारी रहमत का

झूठ का आज बोलबाला है
हर तरफ दौर है सियासत का

चल सिया अब यहाँ से कूच करे
वक़्त अब आ गया है हिजरत का