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ऐसा था बार-ए-ग़म का असर, ख़ुश नहीं हुए / विवेक बिजनौरी
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ऐसा था बार-ए-ग़म का असर, ख़ुश नहीं हुए
हम मुस्कुराने लग गये पर ख़ुश नहीं हुए
हर बार इक ही दुःख से दुःखी तो हुए हैं हम,
हर बार इक ख़ुशी से मगर ख़ुश नहीं हुए
इस बार बारिशें भी हुईं धूप भी हुई,
मैं सोचता हूँ क्यूँ ये शजर ख़ुश नहीं हुए
हम ऐसे शख़्स पार उतरने थे इसलिए,
हमको डुबो दिया तो भँवर ख़ुश नहीं हुए
हमनें चुने हैं ख़ार अज़िय्यत के वास्ते,
तो क्या हुआ ये फूल अगर ख़ुश नहीं हुए