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ऐसा नहीं कि तर्क-ए-मुलाकात में हुआ / शहबाज़ 'नदीम' ज़ियाई
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ऐसा नहीं कि तर्क-ए-मुलाकात में हुआ
नुक़सान-ए-जाँ तो हिज्र के लम्हात में हुआ
इक अजनबी को हम ने गले से लगा लिया
और ये कमाल पहली मुलाक़ात में हुआ
उस के बदन के हम पे सब असरार खुल गए
ये मोजज़ा भी शिद्दत-ए-जज़्बात में हुआ
फिर यूँ हुआ कि हम में तकल्लुफ़ नहीं रहा
उलझन का सामना तो शुरूआत में हुआ
मुझ को किसी तिलिस्म से बाँधे हुए था वो
ये इंकिशाफ़ हिज्र के औक़ात में हुआ