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ऐसा निर्मम प्राण न देखा / श्यामनन्दन किशोर

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ऐसा निर्मम प्राण न देखा!
जिससे प्रतिध्वनि भी न निकलती,
प्रिय, वह तो पाषाण न देखा!

तुम केवल लय-ताल चाहते।
गाकर मन की पीर थाहते।

जो गायक को गीत बना दे,
वैसा स्वर-सन्धान न देखा!

मेरी प्रीत मिलन का सपना।
मेरी जीत जलन का तपना।

जिससे शूल फूल बन जाये,
रे, वह तो वरदान न देखा!

(3.3.1947)