भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐसा लग रहा है मुझे / जय छांछा
Kavita Kosh से
मुझे मालूम नहीं
शायद याद करने की भी कोई हद होती होगी
सीमा होती होगी
समय होता होगा
फिर भी पता नहीं क्यों मैं
हरपल याद करता रहता हूँ तुम्हें ।
शायद मेरी यादें
एम्बुस में पड़कर
यहीं कहीं छटपटा रही हैं
शायद, कर्फ्यू के आदेश से
यहीं कहीं रूक तो नहीं गईं ?
मुझे रत्ती भर भी पता नहीं
मेरी यादें
बीच रास्ते में ही खो रही हैं कहीं ?
तुम्हारी यादें
कभी एकांत में भी भीड़ बनकर आती हैं
भूख की तरह हरदम जगने वाली / बढ़ने वाली
तुम्हारी प्यारी-सी यादों ने
मेरा बुरा हाल कर दिया
आशा, भरोसा ही मर चुके
इसीलिये तो
इस समय
ऐसा लग रहा है मुझे-
तुम्हारी यादों की सौगात
क्यों न तुम्हें ही उपहार में भेज दूं ?
मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला