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ऐसा ही होता है / केशव तिवारी
Kavita Kosh से
पहले वे सिंह-सा दहाड़ते थे
बिगड़ैल साण्ड-सा फुफकारते थे
उन्हें भ्रम था उन्हीं के दम पर है
देश और उसका स्वाभिमान ।
अब वे सियार सा हुहुवा रहे हैं
बगलें झाँक रहे हैं ।
ऐसा ही होता है जब
कीचड़ भरे खेत में
फँसता है गरियार बैल, तब
जुआ छोड़ बैठ जाता है वहीं
फिर कुसिया से खोदने पर भी
उठता नहीं ।