ऐसी कर खबर समझ घर आया।
समुझु-समुझु सिर भार उतारों हिल मिल रहो प्रेम धुन छाया।
छमा सील संतोष आरती ज्ञान लहर कर जोग जगाया।
होत प्रकाश विलास बुद्धि को आतमराम सुरत ठहराया।
शबद सागर निहार नेह सों है पद मुक्त निसान घुमाया।
निस दिन बजत नाम नोविद जूड़ीराम गुरु राह लखाया।