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ऐसी भक्ति साधू मत किजीये / निमाड़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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ऐसी भक्ति साधू मत किजीये,
जग मे होय नी हाँसी
(१) अन्त काल जम मारसे
गल दई देग फाँसी....
..........ऐसी भक्ति......
(२) जो मंजारी ने तप कियो,
खोटा व्रत लिना
घर से दीपक डाल के
आरे मूसाग्रह लिना....
........ऐसी भक्ति......
(३) जो हो लास पिघल चली,
पावक के आगे
ब्रज होय वहा को अंग...
..........ऐसी भक्ति.....
(४) देखत का बग उजला,
मन मयला भाई
आख मिची ऋषी जप करे
मछली घट खाई....
.........ऐसी भक्ति......
(५) ग्रह ने गज को घेरिया,
आरे कुंजरं दुंख पाया
हरी नाम उचारीया
आरे तुरंत ताल छुड़ाया...
........ऐसी भक्ति....