ऐसी सुविधाओं से घिर गए लोग।
अपने ही भीतर तक मर गये लोग!
देखते चलते पलड़ा किधर भारी,
कभी इधर तो कभी उधर गये लोग!
कैसे सीधे पहुंचे कोई उन तक,
क़दम-क़दम पर पत्थर धर गये लोग।
सदा साथ रहने के दावे करते,
आओ देखें, आज किधर गये लोग।
उठती लहरें रोके से न रूकेंगी,
हर दौरे-खौफ़ से गुजर गये लोग।