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ऐसे नहीं / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
रोशनी ऐसे नहीं आती
साथ लाती है अपनी परछाइयाँ
पत्थरों पर धीरे-धीरे
गिरती है बारिश
विलाप की तरह :
वह परछाईं की ओर
ललक से देखता है
जैसे उसमें से रोशनी आएगी।