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ऐसे नादाँ भी हमको बनाते क्यूँ हो / कांतिमोहन 'सोज़'

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ऐसे नादाँ भी हमको बनाते क्यूँ हो।
लौटने का ही इरादा है तो जाते क्यूँ हो।।

मैं अगर ग़ैर नहीं आपका अपना भी नहीं
कोई रिश्ता ही नहीं है तो सताते क्यूँ हो।

अपनी तौहीन की परवा नहीं मुझको लेकिन
तुमको मिलना ही नहीं है तो बुलाते क्यूँ हो।

अजनबी हैं तो जुदा क्यूँ न हों राहें अपनी
मेरे माज़ी की मुझे याद दिलाते क्यूँ हो।

मैं तो हूं ग़ैर मगर उसको सगा मत समझो
अपनी रूदाद<ref>कहानी</ref> ज़माने को सुनाते क्यूँ हो।

मुझको शिकवा न तुम्हें मुझसे शिकायत कोई
आँख मिलती है तो फिर आँख चुराते क्यूँ हो।

बाद मरने के मेरे उनका ये पैग़ाम आया
सोज़ पागल न बनो जान से जाते क्यूँ हो॥

शब्दार्थ
<references/>