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ऐ इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-तमन्ना ये क्या हुआ / ख़ुर्शीद अहमद 'जामी'
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ऐ इंतिज़ार-ए-सुब्ह-ए-तमन्ना ये क्या हुआ
आता है अब ख़याल भी तेरा थका हुआ
पहचान भी सकी मेरी ज़िंदगी मुझे
इतनी रवा-रवी में कहीं सामना हुआ
चमका सके न तीरा-नसीबों की रात को
हम-राज़ हैं तेरे माह ओ अंजुम तो क्या हुआ
मुझ से कहीं मिला ग़म-ए-दौराँ तो इस तरह
जैसे मेरी तरह से है वो भी थका हुआ
जामी फ़ज़ा-ए-मौसम-ए-गुल यूँ उदास है
जैसे कहीं क़रीब कोई हादसा हुआ