ऐ काश कि तू मत्न जो मेरा पढ़ता
मुझ से भी मिरे फ़न से भी वाकिफ़ होता
कुछ जाने बगैर फ़तवा सादर करना
क्या अहले-बसीरत को है शोभा देता।
ऐ काश कि तू मत्न जो मेरा पढ़ता
मुझ से भी मिरे फ़न से भी वाकिफ़ होता
कुछ जाने बगैर फ़तवा सादर करना
क्या अहले-बसीरत को है शोभा देता।