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ऐ काश कि तू मत्न जो मेरा पढ़ता / रमेश तन्हा
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ऐ काश कि तू मत्न जो मेरा पढ़ता
मुझ से भी मिरे फ़न से भी वाकिफ़ होता
कुछ जाने बगैर फ़तवा सादर करना
क्या अहले-बसीरत को है शोभा देता।