ऐ किसन अपने खिलौनन कूँ थिरकतौ कर दै।
नींद में खोये भये बिस्व में चाबी भर दै॥
लीप हर घर की जमीन अपनी इनायत सूँ किसन।
और छींकेन पै छब-छाछ की छछिया धर दै॥
याद कर्त्वें तोहि घर-घर में बने भये आरे।
सगरे आरेन में रहमत के बतासे धर दै॥
हम जो सच्च’ऊँ एँ तिहारे तौ दया सूँ अपनी।
हमरे हिरदे की गिलसियन कूँ लबालब भर दै॥
हाँ हमन्नें’इ खुद’इ दर्द-अलम माँगे हते।
और अब हम्म’इ अरज कर्त्वें उनें कम कर दै॥