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ऐ ग़म-ए-दिल! साथ मेरे तू कहाँ तक जाएगा / रामस्वरूप 'सिन्दूर'
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ऐ ग़म-ए-दिल! साथ मेरे तू कहाँ तक जाएगा!
मैकदे तक जाएगा, या आस्ताँ तक जाएगा!
खोज कर हारा, न पाया आज तक उसका पता,
पर मेरा बेलौस नाला जाने जां तक जाएगा!
रह गया तनहा मुसाफ़िर जैसा मीरे कारवाँ,
वो उफ़ुक के पार यानि बेकराँ तक जाएगा!
कारवाँ का हर मुसाफ़िर अपनी मंजिल पा गया,
राहबर से कौन पूछे, तू कहाँ तक जाएगा!
हमसफ़र को भी है यकीं ‘सिन्दूर’ है भटका हुआ,
रास्ता कोई भी हो मेरे मकाँ तक जाएगा!