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ऐ तो म्है ई हां / सांवर दइया
Kavita Kosh से
गूंगा हुया हो कांई
इयां कियां मरण देवां भूख सूं
रेतराम-खेतराम नै
अंधारै में रैवण कोनी देवां
धूड़ियै-फूसियै नै
नित आगै बधती दुनिया में
लारै कोनी रैवन देवां
धिसियै-मघलै नै
आखरां री अलख जगाणी है
गांव-गांव
ढाणी-ढाणी
घर-घर
कुरड़ै अर झींटियै रै हाथां में देणो है
पाटी-बतरणो
खुंवै-सूं-खुंवो जोड़’र चालण रो
हक दिरावांला
रामी-धापी-कमली-विमला नै ।
ठीक है
बगत माड़ो है
म्हैं ई जाणा
भाई नै भाई कोनी चावै
बकार’र देख लो सैण-सूं-सैण नै
जे बाढ़ी आंगळी माथै ई मूतै तो…
ऐ तो म्हैं ई हां
कै थांरै खातर
अष्ठपौर सोच करां
नीं जणा
आज रै जमानै में
कागद रै टुकड़ा माथै
रबड़ री मोहर रै एक ठप्पै साटै
इण ढाळै कोई सोच करिया करै
अरे भाई !
ऐ तो म्हैं ई हां
जिका थारै खातर दिन-रात……!