भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐ दिन / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नीं लिख सक्यौ
"परेस" ने खत तीन महिनां सूं
नीं करसक्यौ
कपड़ा रै इस्तरी आज ई !
नीं जा सक्यौ
मोहन री मां री मोकाण
नीं खा सक्यौ
घरवाळी साथै
बजार जा‘र
आइसक्रीम।
अबै सोचूं:
ओ कांई करूं हूं
जीवूं हूं
कै रोजिना
थोड़ौ-थोड़ौ मरूं हूं!