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ऐ बशर! तब तिरी दुनिया में उजाला होगा / विजय 'अरुण'

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ऐ बशर! तब तिरी दुनिया में उजाला होगा
जब तिरे पहलू में कुछ नूर का तड़का होगा।

आज लड़ जाऊंगा दुनिया से जो होगा होगा
हश्र<ref>प्रलय, हालत</ref> इक हश्र से पहले यहीं बरपा<ref>होना</ref> होगा।

जितना ही रिज़्क़ की ख़ातिर कोई होगा बेताब
उतना ही हिर्स<ref>संक्षिप्त</ref> की ज़ंजीर में जकड़ा होगा।

आदमी ऐसा भी होगा कि ख़ुदा ही से लड़े
सोचा होगा न ख़ुदा ने भी कि ऐसा होगा।

तू ख़लाओं<ref>विस्तार, स्पेस</ref> में फ़रिश्ता-सा उड़े लाख मगर
आदमी बन के ज़मीं पर तुझे चलना होगा।

दिल की जानिब ही नज़र जब न हुई दीवाने
फिर तिरी दूर निगाही से भला क्या होगा।

क्या कहा आज जोई देखा है तू ने इंसां
ऐ 'अरुण' शोबदा<ref>जादू</ref> होगा, कोई धोका होगा।

शब्दार्थ
<references/>