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ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा / रमेश तन्हा

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ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
बन सका कोई न तेरा राज़दां तेरे बग़ैर

अपने ही औहाम की मस्ती में तन्हा ही रहा
ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
हो के बस्ती का भी तू बस्ती में तन्हा ही रहा

खिल सके किस पर तिरे राज़े-निहां तेरे बग़ैर

ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
बन सका कोई न तेरा राज़दां तेरे बग़ैर।