ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
बन सका कोई न तेरा राज़दां तेरे बग़ैर
अपने ही औहाम की मस्ती में तन्हा ही रहा
ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
हो के बस्ती का भी तू बस्ती में तन्हा ही रहा
खिल सके किस पर तिरे राज़े-निहां तेरे बग़ैर
ऐ बशर तू जादा-ए-हस्ती में तन्हा ही रहा
बन सका कोई न तेरा राज़दां तेरे बग़ैर।