ऐ ब्रजचन्द गोविंद गोपाल ! सुन्यो क्यों न एते कमाल किए मैं .
त्यों पद्माकर आनंद के नद हौ, नन्द नंदन ! जानि लिए मैं .
माखन चोरी कै खोरिन ह्वै चले भाजि कछु मानि जिए मैं .
दुरि न दौरि दुरयो जौ चहौ तौ दुरौ किन मेरे अँधेरे हिए मैं .
ऐ ब्रजचन्द गोविंद गोपाल ! सुन्यो क्यों न एते कमाल किए मैं .
त्यों पद्माकर आनंद के नद हौ, नन्द नंदन ! जानि लिए मैं .
माखन चोरी कै खोरिन ह्वै चले भाजि कछु मानि जिए मैं .
दुरि न दौरि दुरयो जौ चहौ तौ दुरौ किन मेरे अँधेरे हिए मैं .