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ऐ मेरी रूहे-ग़ज़ल साथ निभाना होगा / कांतिमोहन 'सोज़'
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ऐ मेरी रूहे-ग़ज़ल साथ निभाना होगा ।
लाख कलियों को अभी फूल बनाना होगा ।।
उसकी ज़िद है तो नुमाइश ही सही क्या कीजे
दिल की दीवार पे हर दाग़ सजाना होगा ।
मैंने ऐ दिल तेरी हर बात रखी है अब तक
ये न कहना कि फिर उस बज़्म में जाना होगा I
आप ही सोचिए देते हैं दुहाई किसकी
आप तो कहते थे ठोकर पे ज़माना होगा I
ग़मे-जानां की पनाहों से निकल आया है
दिले-आवारा कहाँ तेरा ठिकाना होगा I
मौत से कह दो वो नाले की तवक़्क़ो न करे
अपने होठों पे बहर-कैफ़ तराना होगा I
सोज़ के पास न अब कोई बहाना होगा I
हाले-दिल उसको बहर-हाल सुनाना होगा ।।