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ऐ वतन / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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लहलहाती रहें वादियां खेतियां, ऐ वतन तेरे गुलशन महकते रहें
तेरी कानें जवाहिर उगलती रहें, जाम ख़ुशहालियों के खनकते रहें
                तेरे बाग़ों में ग़ुंचे चटकते रहें

तेरी तोपों के मुंह आग उगलते रहें, दुश्मनों को तेरे मात होती रहे
तेरी धरती उगलती रहे सीमो-ज़र, सोने चांदी की बरसात होती रहे
                तेरी तामीर दिन रात होती रहे

तेरे टैंकों के बढ़ते हुए क़ाफ़िले, दुश्मनों की सफ़ों को मिटाते रहें
कर के सर हर महाज़ और हर मोर्चा, शान अपने वतन की बढ़ाते रहें
                धाक अपनी जहां में बिठाते रहें

दुश्मनों के ठिकानों पे प्यारे वतन, तेरी मीज़ाईलें वार करती रहें
कर के तय सैंकड़ों कोस की दूरियां, दुश्मनों पर ये यलग़ार करती रहें
                उन के अड्डों को मिस्मार करती रहें

जगमगाते रहें कारख़ाने तेरे, तू तरक्की की राहों पे चलता रहे
तेरी हर आरजू का मुक़द्दस शजर, हर घड़ी फूलता और फलता रहे
                तू तरक्की के सांचे में ढलता रहे

ऊंची शिक्षा के भी सिलसिले आ`म हों, आये दिन हर जगह दर्स-गाहें खुलें
नित नये डैम तामीर होते रहें, पेश क़दमी की हर रोज़ राहें खुलें
                हर जगह हर तरफ़ शाहराहें खुलें

तेरे सच्चे सिपाही तेरे वासिते, अपनी जानों को क़ुर्बान करते रहें
तेरे जां-बाज़ जब भी ज़रूरत पड़े, तेरी राहों में हंस हंस के मरते रहें
                तेरे दामन को फूलों से भरते रहें
 
आयें ठण्डी हवायें तिरी ऐ वतन, मस्त झरने हसीं गीत गाते रहें
तेरे बागों के सर सब्ज़ पेड़ों तले, तेरे दिह्क़ान तानें उड़ाते रहें
                जश्न आज़ादियो के मनाते रहें

मुझको मा`लूम था मेरे प्यारे वतन, 'कारगल` से भी तू कामयाब आयेगा
वक्त़ का ये गुज़रता हुआ क़ाफ़िला, तेरे दामन को फूलों से भर जायेगा
                दुश्मन अपने किये की सज़ा पायेगा