ऐ शहसवारो!/ अली सरदार जाफ़री
ऐ शहसवारो!
फैला हुआ है दश्त-ए-जिगरताब
प्यासे हैं चश्मे प्यासे है गिर्दाब
कुछ और होंगे जीने के आदाब
ख़ूने-जिगर ही अब है मए-नाब
ऐ शहसवारो
ऐ शहसवारो
उठते बगूले, इफ़ीत पैकर
सूरज की किरनें, सफ़्फ़ाक ख़ंजर
गिरते है कटकर, शाहीं के शहपर
शौके़-सफ़र ही अपना है रहबर
ऐ शहसवारो
ऐ शहसवारो
वादी-ब-वादी, मंज़िल-ब-मंज़िल
सहरा-ब-सहरा, साहिल-ब-साहिल
क़ातिल-ब-क़ातिल, क़ातिल-ब-क़ातिल
दिल-सा सिपाही, सबके मुक़ाबिल
ऐ शहसवारो
ऐ शहसवारो
आई कहाँ से बूए-बहाराँ
जादू भरी है सौत-ए-हज़ाराँ
शायद यहीं है शहरे-निगाराँ
कुछ और हिम्मत ऐ ज़ौक़े-याराँ
ऐ शहसवारो
ऐ शहसवारो
जाना है आगे हद्दे-नज़र तक
अज़्मे-सफ़र से ख़त्मे-सफ़र तक
मौज़े-बला से मौज़े-गुहर तक
ख़ुश्की-ए-लब से दामने-तर तक
ऐ शहसवारो
ऐ शहसवारो