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ऐ सनम तुझ बिरह में रोता हूँ / 'सिराज' औरंगाबादी

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ऐ सनम तुझ बिरह में रोता हूँ
अश्‍क-ए-ख़ूनीं सीं मुँह कूँ धोता हूँ

बंदगी में मुझे क़ुबूल करो
मैं तुम्हारा ग़ुलाम होता हूँ

बारिश-ए-आब-ए-अश्‍क है दरकार
दाग़-ए-हिज्राँ के बीज बोता हूँ

बोलता हूँ जो वो बुलाता है
तन के पिंजरे में उस का तोता हूँ

मत कहो मुझ सीं क़िस्सा-ए-फ़रहाद
ख़्वाब-ए-शींरी में आज सोता हूँ

गौहर-ए-अश्‍क कूँ मिसाल-ए-‘सिराज’
रिश्‍ता-ए-आह में पिरोता हूँ