भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐ सनम तुझ बिरह में रोता हूँ / 'सिराज' औरंगाबादी
Kavita Kosh से
ऐ सनम तुझ बिरह में रोता हूँ
अश्क-ए-ख़ूनीं सीं मुँह कूँ धोता हूँ
बंदगी में मुझे क़ुबूल करो
मैं तुम्हारा ग़ुलाम होता हूँ
बारिश-ए-आब-ए-अश्क है दरकार
दाग़-ए-हिज्राँ के बीज बोता हूँ
बोलता हूँ जो वो बुलाता है
तन के पिंजरे में उस का तोता हूँ
मत कहो मुझ सीं क़िस्सा-ए-फ़रहाद
ख़्वाब-ए-शींरी में आज सोता हूँ
गौहर-ए-अश्क कूँ मिसाल-ए-‘सिराज’
रिश्ता-ए-आह में पिरोता हूँ