ऐ हुस्ने-नज़र कितना हसीं है शिमला / रतन पंडोरवी
ऐ हुस्ने-नज़र कितना हसीं है शिमला
क्या हूर का चिहरा तो नहीं है शिमला
कौसर में धुली देखी है हर चीज़ 'रतन'
बस कह दे कि फिरदौस-बरीं है शिमला।
है जून की गर्मी में भी ठंडा शिमला
नक़्शा है किसी आहे-रसा का शिमला
हर संग में हैं हुस्ने-बुतां के जलवे
दस्तार-ए-महब्बत का है "शिमला" शिमला।
पुर अम्न है क्या चीज़ हिमाचल प्रदेश
है राम का ही राज हिमाचल प्रदेश
मैं देख के माहौल को कहता हूँ 'रतन'
भारत का है सरताज हिमाचल प्रदेश।
फिर "शौक़" ने शिमले में बुलाया मुझ को
यूँ फर्श से ता अर्श उठाया मुझ को
तस्लीम बजा लाऊं न क्यों मैं पहले
तहज़ीब ने ये राज़ बताया मुझ को।
भेजा है मुझे "शाद" ने आला कम्बल
कश्मीर के दोशाला से बढ़िया कम्बल
मैं देख के हर तार को कहता हूँ 'रतन'
है खिलअते-पुर-ज़र ये सुनहरा कम्बल।
"साहिर" को मुबारक हो निराला ऐजाज़
हर किस्म के ऐजाज़ से ऊंचा ऐजाज़
ऐजाज़ को क्यों नाज़ न हो 'साहिर' पर
ऐजाज़ का ऐजाज़ है इन का ऐजाज़।
नज़्ज़ारा किया आज कला दर्पण का
भरती है कला बाज कला दर्पण का
देता है दुआ ज़र्रा-नवाज़ी पे 'रतन'
यूँ फ़न पे रहे राज कला दर्पण का।