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ऑनर किलिंग / जया पाठक श्रीनिवासन
Kavita Kosh से
झुके हुए चेहरे
कमानी रीढ़
सियासी प्रश्नों की लकुटिया टेके
हृदयहीन सामंती समाज वह
किसी आदम युग में
जड़ें जमाये अबतक
एक सपने की
भ्रूण-हत्या के बाद
देख रहा है-
धरती के गर्भ में
अभी और क्या बचा पड़ा है
अपना अस्तित्व-
अपनी आन-
स्वाभिमान-पगड़ी- समाज
सब तलाशते उस कुएं में
और वहां
उस सपने की लावारिस लाश
देखते हो तुम
अगर वह जीता
तो हो जाता एक आम दंपत्ति
आज वह एक अंतरजातीय
प्रेम कहानी है
यहाँ इस गाँव की प्यास
पानी से नहीं
पानी में
अपने अक्स टटोलते
प्रतिध्वनि अगोरते
दंभ से बुझेगी
बस!
प्रकृति नहीं जनेगी प्रीत
धरती बाँझ हुई.