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ओझा बाबा को याद करते हुए / विमलेश त्रिपाठी

नदी नाले थे खेत बधार था गीत गाती औरतें थीं
घुघुआ मामा आइस-बाइस
छूआछूत के खेल थे हमारे साथ भागते-हाँफते
खेलते-थकते

हमने सीख ली थी गालियाँ
गीत सीख लिए थे जो भोंपू में दूर किसी गाँव से आते कान में
ले जाते कहीं और
किसी दूसरे समय में

डरना और उत्तेजित होना
सीख लिया था
लजाने लगे थे हम लड़कियों से

ऐसे ही एक समय में तुम आए
'क' की जगह तुमने एक सुग्गा बनाया
हमारी शरारतों के समानान्तर

और उस सुग्गे से ही निकले तमाम अक्षर
शब्द वाक्य और भर गई काली स्लेट
जादुई सफ़ेद शब्दों से

फिर कितने-कितने जादू
तुम्हारे लूल्हे हाथों में
कि अब तक ख़त्म नहीं हुए

हे जादू तुमसे जब भी मिला
मेरे कन्धे पर
कई सुग्गे बैठे एक साथ
जादू जादू जादू और जादू..

तुमसे सात सौ किलोमीटर दूर बैठा
आज तुम्हें याद कर रहा हूँ

मिट्टी के स्लेट पर बना सफ़ेद सुग्गा
कहीं उड़ गया है
पता नहीं कितने समय से...।

  • ओझा बाबा ( आदरणीय रणजीत ओझा) जिन्होंने बचपन में मुझे पढ़ाया।