रचनाकार: बंशीधर षडंगी(1940)
जन्मस्थान: रायरंगपुर, पुरी
कविता संग्रह: समय असमय(1977), स्थविर अश्वारोही (1980), शबरी-चर्या(1989), छाया-दर्शन(1995)
ऑपेरा के सारे चरित्र निर्दिष्ट
जैसे राजा :-
निश्चय भावप्रवण
विलासिता प्रिय
और ख्यालों में खोया हुआ
मंत्री :-
सुचतुर, अल्पभाषी और गंभीर
सेनापति :-
चंचल दिल, अस्थिर और अहंकारी
एवं राजा की अनेक रानियों में
प्रियतमा छोटी रानी के साथ
गुप्त संपर्क स्थापित करने वाला
कोतवाल :-
अधिकांश समय सेनापति का सहायक
इसके अलावा, ऑपेरा में गांव की प्रजा
आदि चरित्र होते हैं।
विदूषक भी होता है मगर
सभी का ध्यान-आकर्षित करने वाला चरित्र
जिसकी उपस्थिति में सारे पात्र और
दर्शक मंडली में हलचल मच जाती है।
परिस्थितिवश वह मूर्ख बनने का
अभिनय करता है
वास्तव में वह मूर्ख ?
विषय वस्तु गतिशील होकर
परिणति में पहुँचते समय
शायद वह सबसे ज्यादा चतुर बनकर
प्रतिपादित कर समाप्त करता है।
(2)
हम सभी भी ऑपेरा के पात्र
क्या दर्शक ?
अब कौन सी भूमिका में ?
जितना भी करने से
हम किकर्त्तव्य-विमूढ़
दर्शक स्थान से उठकर
प्रतिक्रिया प्रदर्शन कर नहीं सकते
या संलाप सभी को इधर- उधर कर
विषय में मोड़ नहीं ला सकते।
(3)
फिर से कुनाल बनकर
आँखें निकलवानी होगी।
श्रीकृष्ण बनने पर अदग्ध पिंड बनकर
लकड़ी के भीतर रहना होगा।
इंद्रद्युमन होने पर
निसंतान होने के लिए वर मांगना होगा।
विक्रमादित्य होने पर
कंधे पर लटके वेताल
के हर सवाल का जवाब देना होगा।
युधिष्ठिर होने पर
भाइयों को नीचे ठेलना पड़ेगा
और
परीक्षित होने पर
तक्षक के डसने से मरना होगा।
तब कौन सी भूमिका अवधारित
किसे निभाना होगा ?