भगवान सर्व-व्यापक वेदों में भी कहा है।
सब काल में रहेगा, सब काल में रहा है।
उसका न आदि था औ, न अन्त ही कहीं।
वह तब वहाँ-यहाँ था, अब भी रमा वहीं है।।
माता-पिता और शिक्षक उसका नहीं है कोई।
सम्पूर्ण प्राणियों का रक्षक पिता वही है।
उत्पत्ति-स्थिति औ लय का, इक सिलसिला वही है।
कर्मों का एक प्रेरक, कर्मों के फल का दाता।
यज्ञादि का विधाता, तारक प्रभु वही है।।
वह जानता है सबके मन की समस्त बातें।
उसने बनाए दिन हैं, उसने बनाई रातें।
यह आसमान उसका, धरती, पावन औ पानी।
यह अग्नि, सब उसी की कहते हैं, ज्ञानी-ध्यानी।।
ऐसे प्रभु का कल्लू, एक नाम ओम् ही है।
जो ओम् नाम जपता ज्ञानी वही सही है।।