बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ओलामासी कोहलिया हो सो तुम जैहौ लंगर कौन दिखा।
हमें जैहें नन्दन वन हो सुआ सारो बसाये जहाँ
उनकी लाली लाली चोचें तो पंखन पद्म लिखे।
दधि बेचन निकरी हो सजन बहु ग्वालिनिया।
सिर सोने की मटुकिया हो तो रूपे की दोहनिया।
अन्तर धर घेरी हो सजन रये पचरसिया।
तुमाओ का बिकानौ हो काहे की नई भई बोहनिया।
हमरो दइया बिकानो हो दूधई की नई भई बोहनिया।
धँस आओ महल में हो करौं तोरी बोहनिया। ओलामासी...
हमरो घूँघटा बिकानों हो गालों की नई भई बोहनिया।
धँस आओ महल में हो करौं तोरी बोहनिया।
हमरी चोली बिकानी हो जुबनन की नई भई बोहनिया।
धँस आओ महल में हो करौं तोरी बोहनिया। ओलामासी...