म्हारी ओळख री आरसी मांय
थूं कठैई निगै नीं आवै
जद चढ जावै-
डीगाई रो चसमो।
म्हैं भूल जावूं
कै किण रचाव रचीज्यो
अर म्हैं अठै-
किण मारग पूग्यो?
म्हारी ओळख री आरसी मांय
निगै आवै हणै-
डूंगर- रचाव रा
मैल-माळिया- भाषा रा
समंदर- सबदां रा।
बै जूना दिन
मिसरी सूं
हणै हुयग्या है- लूण!
बां नै आज नीं बखाणूं
पण हणै ई नीं भूल्यो हूं
भूल्यां
उण बगत रा साखी
खड़ो कर सकै है-
सवाल।
सवाल सूं बचणियां
ओ म्हारा सूमड़ा मन!
सिंवर उण गुरुवां नै
जिणां दरसायो-
कै सबदां रै हुवै
आंख अर पांख।