भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओळभो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
आभै रै आंगणै
गरजतै-तरजतै लोरां रो
हाको सुण जागी
पीड़ दाब्यां पसवाड़ो फोरियां सूती धरती
सूरमा रै सत्कार नै संभी
पण औ कांई
दो छांटां पछै
पून सागै बूहा गया लोर
दब्योड़ी तिरस जाग्यां पछै
भाभड़ाभूत हुयोड़ी धरती
दियो एक ई ओळभो-
सरधा नीं हुवै तो
बकारया ना आगै सारू !