भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओळाव / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिनख नै मारण खातर
मिनख सोधै-
गाय
सुअर
का माथै रा केस

धरती लाल हुयां पछै
पछतावै मिनख
गंदक दांई मरियै मिनखां नै देख
जापता करै
आगै सारू मिनख नीं मरै

मिनख नीं मरै इणी जापतै सारू
फेरूं मरै मिनख
बां मरियोड़ै मिनखां री मौत रै बदळै सारू
शुरू हुवै अंतहीन जुद्ध
आगै – सूं आगै चालतो रैवै
आ जाणता थकां –
नीं चालणो चाइजै !

मिनख रै मन रै मांय बैठयै दरिंदै नै
कोई न कोई ओळावो चाइजै ?