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ओळ्यूं : चार / ओम पुरोहित ‘कागद’

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धोळै दोपारै
आभै में हेरूं
रात आळो
खांडियो चांद
दिखै ई नीं
समूळै आभै
घूम घाम'र
धरती री सींव
उतरै दीठ
मन मुळकै
हरखै अंतस।

अंतस रो ओ हरख
मुळकतै मन री
आ ऊंडी थ्यावस
थांरी ई तो है
अखूट ओळ्यूं!