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ओस री बूंदां / सुनील गज्जाणी
Kavita Kosh से
सौगन-वादां सूं ई चालै
इच्छावां री जातरा
जोग कद पासो पलटै
ठाह नीं रैवै खुद नैं ई
हालता-हालता कद सांस्यां
थाकण लाग जावै
हेस-पेस कद मानखै सूं रमण लाग जावै
उण बगत
सीधो-सीधो मैदान
धोरां ज्यूं लागै
कदै-कदै सांस्यां बरफ ज्यूं जम जावै
पंपोळै है मिनख
मिनख री काया
सांस्यां गळण लाग जावै
मोह रै आंसुवां रै ज्यूं
जलम्योड़ै टाबर री किलकारी ज्यूं
तोतलै टाबर रै पैलै आखर ज्यूं
हिलण-डुलण लाग जावै सांस्यां
हेत-लाड-मिन्नत लियोड़ी
उण बगत ताणी
जद ताणी बगियां मांय बिछ्योड़ी दूब माथै
ओस री बूंदां नैं सूरज री किरणां नीं छूवै।