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ओहदे से तेरे हम को बर आया न जाएगा / 'क़ाएम' चाँदपुरी
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ओहदे से तेरे हम को बर आया न जाएगा
ये नाज़ हे तो हम से उठाया न जाएगा
टूटा जो काबा कौन सी ये जा-ए-ग़म है शैख़
कुछ कस्र-ए-दिल नहीं कि बनाया न जाएगा
आतिश तो दी थी ख़ाना-ए-दिल के तईं मैं आप
पर क्या खबर थी ये कि बुझाया न जाएगा
होते तेरे मजाल है हम दरमियाँ न हों
जब तक वजूद-ए-शख़्स है साया न जाएगा
‘काएम’ ख़ुदा भी होने को जो जानते हैं नंग
बंदा तो उन के पास कहाया न जाएगा