ओहो, चला गया पानी! / प्रकाश मनु
देखो पानी की शैतानी,
ओहो! चला गया पानी!!
अभी बहुत थे काम अधूरे
घर भर को अभी नहाना था,
छुटकू कूद रहा है कब से
उसको पिकनिक पर जाना था।
अभी न पोंछा लगा फर्श पर
बरतन जूठे पड़े हुए हैं,
केसे पूजा-अर्चन होगा-
दादा जी भी कुढे़ हुए हैं।
भैया जी की शेव अधूरी
देख रहे हैं दाएँ-बाएँ,
कुछ गुस्से, कुछ गरमी में हैं
घूम रहे पापा झल्लाए।
मम्मी के बरतन खड़के हैं-
पानी, पानी, पानी!
ओहा! चला गया पानी!!
बूँद-बूँद था टपक रहा, पर
अब तो बिलकुल डब्बा गोल,
नहीं पढ़ाई हुई अभी तक
अंग्रेजी, हिंदी, भूगोल।
कैसे होमवर्क अब होगा
मम्मी चीख रही है-रानी,
जा, पड़ोस से भरकर ले आ
थोड़ा सा पीने का पानी!
क्या-क्या करूँ, समझ ना आए,
पानी बिना अक्ल चकराए,
उस पर कड़ी धूप के चाँटे
सुबह-सुबह तबीयत अकुलाए।
बिना नहाए शाला जाऊँ,
तुम्ही बताओ नानी?
ओहो! चला गया पानी!!