भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओ अम्माँ! ओ अम्माँ! / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अटकन दे, चटकन दे।
दही बिलोकर मक्खन दे।
ओ अम्माँ! ओ अम्माँ!

थप-थप, थप-थप थपकी दे।
पलकें भारी, झपकी दे।
ओ अम्माँ! ओ अम्माँ!

हाथ सिरहाने अपने दे।
आज सुहाने सपने दे।
ओ अम्माँ! ओ अम्माँ!

अच्छी-अच्छी सीखें दे।
ढेर भरी आशीषें दे।
ओ अम्माँ! ओ अम्माँ!