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ओ अहींक हाथमे दम तोड़ने छल बाबा / दीपा मिश्रा
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बम गोला बारूदक बीचमे
अकाशमे उड़ैत पक्षी दल थरथरा उठल
ओ एम्हर ओम्हर बेतरतीब उड़य लागल
ओकरा नहीं ज्ञात छल जे
जमीन जेना अकास सेहो बांटल रहै छै
विस्फोटक ग्रास बनल
एकटा सुन्दर बाज
हमर आगाँ खसल
ओकरा दौड़िके उठाके हम बाबा
अहाँक हाथमे देने रही
हमरा होइत छल अहाँ पैघ छी
ओकरा बचा लेब
किछु देर धरि छटपटाके
ओ अहींक हाथमे दम तोड़ने छल बाबा
ओहि दिन अहाँ पर हमरा सर्वाधिक क्रोध उठल छल।
आब हम सोचि लेने छी
यदि किओ आहत भेल पक्षी हमरा भेटत
ओकरा पैघक हाथमे किन्नहु नहि देब
हम ओकरा अपनहि बचाएब
हम एखनो मनुख छी बाबा
हमर आँखिसँ एखनो नोर बहैये।