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ओ काळधिराणी कंकाळी / किशोर कल्पनाकांत

ओ घर
जिण मांय मैं रैवूं हूं
अेक जूनै-सूपनै रो है मिटतो अैनाणो
भींतां उपरां मंड्योडो है तराड़ रो ठिकाणो
साव जोवण सकै कोई
इण घर री हथेळी उपरां उभरीजती
भाग-रेखड़यां नै
ओ घरियो घिरीजग्यो है तराड़ां सूं
जाणै, करजदार घिरीजग्यो है किराड़ां सूं
मोरी, मोखा, दरूजा‘र किवाड़ां सूं
घिरयोड़ो मैं
देखूं हूं नित दिनुगै
भळभळाट करतोड़ी सोनल-तरवार
अंधारै री छाती उपरां करै वार
छंग जावै नींद री भोडकी
अेक सुपनै री मूंडकी
बोम री टूंकळी उपरा टेंग जावै
इयां करतां
गूंथीजै मूंडमाळ
ओ काळी-माई, थांरै सारू!
म्हारो अबोल्यो मनड़ो जोवै
सामला
तामावरणी‘र पीळांस्यां मारगां नैं
म्हारी आंधळी-चेतणा
पंपोळै‘र थपथपावैं
रातनै थेपड़ै म्हारी कनपट्यां
अेक अणलोकाळ-भाषा गावैं लोरी
कुण है -
बा अेक रैबाली छोरी ?
बा भाषा है
अेक चीकणो सिलाखंड
जिण उपरां धंस-धंस‘र रगड़ीजै
चन्नणा क तरवार
जिकी दिनुगै फेर गूंथसी मुंडमाळ
ओ काळधिराणी कंकाळी!
थारै सारू!

म्हारी ऊपरली पलक है तरवार
तळली है सिलाखंडी भासा
आपसरी रगड़ीजै खासा
नित दिनुगै
मैं जोवूं तराड़ चाल्योड़ी भींतां नैं
भींतां है आस-भरोसा
जिका बोलै नित मोसा
रूपाळी-
मारगां री धूळ रो कांपै काळजो
तरवार-धार पीवणो चावै रगत
गूंथणी चावै मुंडमाळ
औ खप्परधारणी-काळी
थारै सारू!

ओ डील
है भोमली टींगरी रो गुढयाळो
तरवार सूं काट नाख कपली-कपली
पण म्हारा कंठा री आ
सिलाखंडी-भासा
किणी तरवार सूं
क किणी प्रचंड-प्रहार सूं
नी कट सकै!
कदै नी कट सकै!
आ है अजर-अमर
सैंचन्नण उजास रा अणत विस्तार मांय
है इणरो रैवास
अणत-बोम मांय घूमती आ उल्का
ओ सिलाखंड
थारली तरवार सूं नीं कट सकै!
इणनै कलम-तणी
नैनी-सी छिणी सूं तरास!
कोर दै इणरै उपरां अेक उणियारो
जिको सूंप सकै जीवण नै पतियारो!
आव!
आपां अेक मूरत घड़ा!
सूछत आतमै री विराट मूरत!
मुंडमाळ रै बदळै
गूंथां सुमनमाळ
कांई कैवै-
मरूथळ मांय फूल कठै सूं आवै ?
फूल आपणा हिरदां रा बागां मांय
घणा-ई है कंवळा-कंवळा!
रंगरंगीला भाव-पै‘प
सोरम सरसांवती आ माळा
कल्याणकरणी काळी!
है थारै सारू!