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ऐसी मनहर शाम
कि जिसमें
ताड़-सुपारी
नारिकेल,
कटहल,
केले के
हहराते हैं अंतरिक्ष तक
हरे समन्दर...
मेरा सब अभिमान तिरोहित
मैं कुर्बान
देखकर ऐसी संध्या लोहित