भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ गान्ही जी ओ गान्ही जी / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
कहाँ छुपे हौ ओ गान्ही जी
तनी निहारौ ओ गान्ही जी!!
तुम्हरे नाम प भगमच्छरु है
कहाँ बिलाने हौ गान्ही जी!!
हाँथे मा तस्वीर तुम्हारि है
कमर मा कट्टा है गान्ही जी!!
सत्य अहिंसा सदाचार की
करैं सफाई ओ गान्ही जी!!
सबसे पीछे खड़ा बुधैय्या
वहै पुकारै ओ गान्ही जी!!
वहिकी कोउ सुनै वाला ना
ओ गान्ही जी ओ गान्ही जी!!