भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ दम्भी पानी! / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
तब भी
तू नहीं था
जब
हमें
हमारे पुरखों ने
सौंपी थी बागडोर
इस समय की।
पुरखों ने जी थी
हम भी जीएंगे
यह पूरी पीढी़
और
सौंप जाएंगे
आने वाली पीढी़ को
जो देखेगी
तेरा पानी
ओ दम्भी पानी!