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ओ नदी! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
ओ सुहानी नदी!
ओ सयानी नदी!
दे हमें सिर्फ
दो घूँट पानी, नदी!
तू पहाड़ी उतरकर
यहाँ आ गई,
अब यहीं पर ठहर
तू हमें भा गई;
दूर हमसे न जा
बाँसुरी-सी बजा,
तू बनी जा रही क्यों
बिरानी, नदी!
प्यार करती हुई
धूप को, छाँव को,
अब शहर को चली
छोड़कर गाँव को;
तू हमें साथ ले
थाम ये हाथ ले,
ले चलेंगे तुझे
राजधानी, नदी!
यों न जल्दी मचा
सब्र कर कुछ अभी,
हाँ, तुझे भी समंदर
मिलेगा कभी।
गाँव, जगल, शहर
जाएँगे सब ठहर,
खत्म हो जाएगी
सब कहानी, नदी!