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ओ नवजात! / सत्यनारायण सोनी

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ओ नवजात !
भरी दुपहरी
तेरा रुदन,
कहते जिसे हम
बाळसाद।
दुनिया में
पहली-पहली दस्तक तेरी।

यही राग अलापता
पहली बार
दुनिया का हर नवजात।
नहीं जानता
रुदन-क्रंदन
दहाड़-पछाड़ की भाषा।
भावशून्य-सा
होता है
पहली-पहली बार
नवजात का चेहरा,
शांत-स्निग्ध।

शुरू के झंझट ही
दुनिया के
उसे सिखाते
रोना-मचलना
और न जाने
कैसी-कैसी
मुद्राएं बनाना।
ओ नवजात!
बचाना,
बस, थोड़ा-सा तो
बचा ही लेना
पहली दस्तक का वह
निर्मल-निश्छल राग।
बचाए रखना
चेहरे पर
बस, थोड़ा-सा ही सही
वह शांत-स्निग्ध भाव।

1999