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ओ ना मा सी धङ! / यात्री
Kavita Kosh से
ओ ना मा सी धङ!
आहि रे बा, आहि रे बा
खुश्चेब खसला, चितङ्!
क्रान्ति मे थूरल गेला शांतिक दूत
लोककेँ लगलइ अजगूत
उतारि कऽ फेकि देल गेलनि फोटो
अपनो तँ एहिना
रहथिन कएने स्तालिनकेकर कपालक्रिया
सुनने रही कतहु की मुर्दाक ओहन दुर्गति?
आहि रे कप्पार!
देशो प्रतिशत क्षमा नहि पूर्वजक लेल
ऊपर अन्तरिक्षमे चलैत रहौ’ उड़ानक खेल
क्रेमलिन मुदा कीदन भऽ गेल
कइएक टा खुश्चेब ढहनेता मने उसलिन बेल
भारतीय थिकहुँ सभकेँ सभकेँ तिल-जल देल...
‘येनास्या पितरो जाताः येन जाताः पितामहाः’
सैह गति होउन हिनको....
ओं शान्ति: शान्तिः!!