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ओ पर्दानशीं तेरी शक्ल में मैं ही हूँ / बिन्दु जी
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ओ पर्दानशीं तेरी शक्ल में मैं ही हूँ।
है झूठ तो बतला दे किस शै में मैं नहीं हूँ॥
रवि-चंद्र तारों में जल थल पहाड़ों में,
जलवा है जहाँ तेरा मौजूद वहीं मैं हूँ।
सृष्टि के दो भालों में दोनों हैं बराबर ही,
आज़ाद कहीं तू है आज़ाद कहीं मैं हूँ।
इस बागे जहाँ से ही मिलता है पता मुझको
हर जड़ में यहीं तू है हर गुल में यहीं मैं हूँ।
यह ‘बिन्दु’ भी मिलता है जब सदर नूर से,
फिर कौन जुदा किससे जो तू है वही मैं हूँ।