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ओ प्रिय तुम्हारी याद आये / हरिवंश प्रभात

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ओ प्रिय तुम्हारी याद आये,
ओ प्रिय तुम्हारी याद आये,
कोई सहारा नहीं है अपना
जो नज़दीक बुलाये।

तेरे अमृत बोल सुनाई पड़े नहीं बरसों से
चंचल चित सुनहरी ग्रीवा, मधुशाला के कलशों से
मिलन का दीपक किस आशा
को लेकर इसे जलाये।

अब शीशे की भाव भरी एक प्याली छलक गयी है,
मन मदिरा है मधुर सरोवर, आशा महक गयी है,
एक पूनम का चाँद चितेरा
रह-रहकर ललचाये।

झील में खिलते तेरे पास दो नैना नील कमल हैं
उनकी छवि निहारूँ आँखों से मेरा संबल है,
मेघदूत की सजल कल्पना
में दिन-रैन बिताये।

सागर के तट पर बैठे हम हैं यह आस लगाये
कोई बनकर लहर काश! मेरे करीब आ जाये,
पर निर्जन में कौन सुने
मन-मांझी टेर लगाये।